एक समय की बात

एक समय की बात है। एक पेड़ की जड़ ने फैसला लिया की अब से वह उस पर चढ़ाए गए जल का काम-से-काम उपयोग करेगी और अधिक-से-अधिक त्याग करेगी। और यह सब वह अपनी टहनियों और पत्तों की भलाई के लिए करेगी।

Living root bridge in Meghalaya

कुछ दिन जड़ ने ऐसा किया तो उसे अच्छा लगा। फिर कुछ सप्ताह बीत गए। इसी तरह कुछ माह बीत गए। करते-करते कुछ वर्ष भी बीत गए।

Captured in the premises of Humanyu Tomb, Delhi

अब जड़ ने महसूस किया कि वह दिन-प्रतिदिन कमज़ोर पड़ रही है, क्षण-प्रतिक्षण उसमें परिवर्तन आ रहा है। अब उसपर चढ़ाया हुआ जल वह टहनियों और पत्तों तक नहीं पहुँचा पा रही है।

Captured in Rishikesh, Uttarakhand

और यह भी तब घटित होना शुरू हुआ जब वें जल के लिए जड़ पर पूरी तरह से निर्भर हो गए थे। और अब तो जड़ में और पत्तों में पहले से अधिक दूरी आ चुकी थी। जैसे-जैसे पेड़ बड़ा हुआ दूरियां बढ़ती ही चली गयी और निर्भरता भी।

Captured on the way to Gangtok from Darjeeling

फिर जड़ ने अपना फैसला बदला। उसने अपने लिए विचार करना शुरू किया सिर्फ इसी मकसद से कि वह अपने कर्तव्यों का भली-भाँती निर्वाह कर सके।

Captured in Chakrata

कुछ दिन पश्चात मनो इस फैसले की प्रशंसा में नीर से लबा-लब एक पत्ता अपनी टहनी से अलग होकर अपनी नीँव को नमन करने पंहुचा।

That's me paying tribute to the roots.

दुनिया की हर एक माँ को श्रद्धांजलि।


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