
एक समय की बात है। एक पेड़ की जड़ ने फैसला लिया की अब से वह उस पर चढ़ाए गए जल का काम-से-काम उपयोग करेगी और अधिक-से-अधिक त्याग करेगी। और यह सब वह अपनी टहनियों और पत्तों की भलाई के लिए करेगी।

कुछ दिन जड़ ने ऐसा किया तो उसे अच्छा लगा। फिर कुछ सप्ताह बीत गए। इसी तरह कुछ माह बीत गए। करते-करते कुछ वर्ष भी बीत गए।

अब जड़ ने महसूस किया कि वह दिन-प्रतिदिन कमज़ोर पड़ रही है, क्षण-प्रतिक्षण उसमें परिवर्तन आ रहा है। अब उसपर चढ़ाया हुआ जल वह टहनियों और पत्तों तक नहीं पहुँचा पा रही है।

और यह भी तब घटित होना शुरू हुआ जब वें जल के लिए जड़ पर पूरी तरह से निर्भर हो गए थे। और अब तो जड़ में और पत्तों में पहले से अधिक दूरी आ चुकी थी। जैसे-जैसे पेड़ बड़ा हुआ दूरियां बढ़ती ही चली गयी और निर्भरता भी।

फिर जड़ ने अपना फैसला बदला। उसने अपने लिए विचार करना शुरू किया सिर्फ इसी मकसद से कि वह अपने कर्तव्यों का भली-भाँती निर्वाह कर सके।

कुछ दिन पश्चात मनो इस फैसले की प्रशंसा में नीर से लबा-लब एक पत्ता अपनी टहनी से अलग होकर अपनी नीँव को नमन करने पंहुचा।

दुनिया की हर एक माँ को श्रद्धांजलि।

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